नन्हीं सी बारिश की बूँद में
उफनता समन्दर देखा है कभी ?
मिट्टी से सने बीज की कोख में
पनपता विशाल पेड़ देखा है कभी ?
शहतूत की पत्तियों पर लाचार
रेंगता रेशमी कीड़ा देखा है कभी ?
साबुन के पानी में निढाल पड़ा
रंगीन बुलबुला देखा है कभी ?
नहीं,
अक्सर नज़र वही देखती है
जो स्वार्थी आँखें देखना चाहें
दुनिया उतना ही समझती है
जितने में फायदा मिल जाए
पर सच्चाई नहीं बदलती
सोने की धूल, हीरे की चमक
मोती का मोल, सूरज की दमक
अक्षुण्ण है, अजर-अमर !
याद रख,
केवल निष्क्रिय है तू मानव
मृतप्राय नहीं, असमंजस त्याग
नकार निराशा के घटक
नवजीवन का संचार कर !
Anupama
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