यूं ही बैठे-बैठे ख्याल आया
क्या हो गर बर्फ की चादर
बिछ जाए उस तारकोल की सड़क पर
क्या हो गर वो सूरज
भूल जाए रोज़ पूरब से खिलखिलाना
चांद न चमके पूनम पर
तारों का खो जाए फसाना
शिवली झरना छोड़ दे
बरगद की दाढ़ी बढ़ना बंद हो जाए
पीपल पर फूल खिलें गुलमोहर के पत्ते खो जाएं
थम जाए नदियां तालाब बहने लगे
ज्वालामुखी शीतल हो जाए
बादल आग उगलने लगे
क्या हो गर भूल कर अपना पता
दरवाज़े चलने लगें
दीवारों के पंख लग जाएं
पंछी छतों पर जम जाएं
जंगल शहर में बस जाएं
गाँव टापुओं में तब्दील हो जाएं
शायद तबाही कहोगे तुम इसे
पर क्यों भला
केवल नाम ही तो बदले हैं
दुनिया चलती रहेगी वैसी ही कोई तब्दीली नहीं !
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