Hindi Poetry

दिल

दुनियादारी की बातें दिमाग समझता है
इस दिल का क्या करूं
पगला बस इक नाम लिए धड़कता है
यन्त्रवत् सी दिन भर हंसती खिलखिलाती हूँ
रोबोट सी सारे काम निपटाती हूँ
खुद को यकीन दिलाती हूँ कि सब ठीकठाक है
सूरज चमक रहा है सड़क पर चहलपहल है
आस्मां में बादल चाँद बिजली सब हैं
बस धुंधलके में छिपे हैं
जल्द ही धुप चमकेगी सब साफ नज़र आएगा
दिन ढलेगा चाँद उभर आएगा
सितारे चमकेंगें बिजलियाँ खनकेंगीं
सब कुछ वही होगा वैसा ही जैसा
सदियों से होता आ रहा है
पर फिर यकायक एक अक्स उभरता है
मन में हलचल होती है
इक नाम बुदबुदा उठती हूँ
और भूल जाती हूँ सारी दुनिया
बस नंगे पाँव दौड़ी दौड़ी
तेरे पास चली आती हूँ
देहरी पर ठिठकती हूँ कहूँगी क्या
किस काम से आई हूँ
क्या कहना था ऐसा जो
सुबह शाम का फर्क़ भूल आई हूँ
उलझी हूँ खुद में तुम्हें सुलझाना चाहती हूँ
सवाल मेरे नदारद हैं जवाब तुमसे चाहती हूँ
पर नहीं फिर से गलत लिख रही हूँ
बहला रही हूँ खुद को इन शब्दों में
जो कहना सुनना है वो तो तुम ही जानते हो
दुनियादारी की बातें दिमाग समझता है
मन में बस एहसासों का दरिया बहता है
वो अपनी गति ले चुका, अब रुकना
दिशा बदलना, व्यवस्थित करना हमारे बस में कहाँ !!

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