आँखों से बहता जल ठंडक नहीं देता कभी… जब उद्गम ही ह्रदय रुपी ग्लेशियर को दुःख की ऊष्मा से पिघला कर हुआ हो तो सुख की अपेक्षा भी क्यों… किसी का आना न आना, किसी का कहना न कहना, किसी की स्वीकृति, किसी का विरोध… तन मन को आंदोलित करने लगे तो समझिये इस दिल का आप पर कब्ज़ा हो गया.. इस मूर्ख को खुद को तड़पाने में ही मज़ा आता है.. दिमाग लाख भला बुरा समझा ले, ये पगला झूमता हुआ उसी फंदे में जा फंसेगा, जहां से वापसी मुश्किल हो.. चिल्ला चिल्ला कर कहता रहे दिमाग.. मत जला खून किसी संगदिल के लिए.. मत सजा ख़्वाब किसी बेवफा की ज़ुबां पर.. मत जान किसी गैर को अपना.. नहीं.. हरगिज़ नहीं सुनेगा ये दिल.. भागता जायेगा उस दर, जहां से दुत्कार और तिरस्कार के सिवा कुछ हासिल नहीं.. और फिर मुट्ठी में बन्द मिट्टी सा कुलबुलायेगा.. अपनी ही गिरफ्त से आज़ाद होने को बेचैन.. खुद ही अपनी सांसें घोंटता.. अपने ही कोमल मन पर कुल्हाड़ी चलाता.. और फिर फूट फूट आँखों से जलधारा बहाता.. और हौले से इस दिमाग को अपनी व्यथा किसी तरह उगल देने की विनती करता.. पागल दिल..
Anupama
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