खोले बैठी हूँ आज वो पुरानी डायरी
जिसके कोरे सफहों पर कुछ नज़्में लिखी थीं
खो गई थी कुछ रोज़ से
पूरा बुकरैक छान मारा था मैंने
मिल ही नहीं रही थी
आज अचानक टेबल की ड्रॉर में मिली
शायद कभी वहाँ रख भूल गई थी
मैं भी न चीज़ों को ढूंढती ही गलत जगह हूँ
या फिर खोजते-खोजते खुद ही खो जाती हूँ कहीं
खैर उन पीले पड़ते पन्नों को पलटा तो
कुछ नज़्में बोल उठीं
नाराज़ हैं मुझसे
अधूरी छोड़ दी थीं लाइनें ही नहीं
लफ्ज़ों के बीचोंबीच भी जगह बाक़ी है
शायद कोई ख्याल लिखते-लिखते छूट गया था
या मैंने ही गुंजाईशें बहुत छोड़ रखी थीं
अब भर देना है इन सूराखों को
एयर टाईट कर देनी है ये डायरी
और सहेजकर महफूज़ रख देनी है कहीं
बहुत हुई आवाजाही !
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