Hindi Poetry

धुंए का समंदर

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धुएं का समंदर देखा है कभी?
आओ, ले चलूं तुम्हें उस नगरी
जहाँ इक पिघली सी शाम में
धुंधली सी इमारतें आहें भरती हैं
बरसों से आधे शहर को ढो रही
जर्जर से पुल की हर लकड़ी चरमराती है
खुद को बचाने की गुहार लगाती इंसानियत
मेरी आंखों में आंखें डाल पूछती है मुझसे
इस रात की सुबह कब होगी!
थम जा पल भर को और सोच ज़रा
इनकी कराहों का कुहासा ही तो
कहीं वो धुएं का समंदर नहीं!!
Anupama

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