“बापू सोड़े में चांदना दीखे है…. दीवे ने फूंक मार दे… दीखना बंद हो जाऊगा”
हंसते हुए अपनी भाषा में एक जोक सुनाया उन्होंने, हरयाणवी की खड़ी बोली का स्वाद लेने के बाद मैंने हिंदी रूपांतरण पूछा… वो कहने लगे एक लड़के की रजाई पुरानी हो गयी थी, उसने पिता से कहा कि रुई के टूटने से सर पर रज़ाई ओढ़ लेने पर भी रोशनी दिखाई देती है.. पिता ने झट दिया बुझाने को कहा, न रोशनी होगी न दिखेगी…
हंसी फिर छूट गयी, पर हंसते हंसते मन में एक ख्याल कुलबुलाया, करते तो हम सब ऐसा ही हैं… असल परेशानी को नज़रअंदाज़ करते हुए छोटे मोटे मसलों में उलझे रहते हैं.. पत्तियां सींचकर, शाखाओं पर लगे फल तोड़ने में हम सब की रूचि रहती है, पर पेड़ लगाने में किसी की नहीं… आराम की ज़िंदगी हम सब बिताना चाहते हैं, पर उसके लिए मेहनत नहीं.. भगवान को कोसते या पूजते हुए, निर्वाण हम सब चाहते हैं, पर स्वयं पर नियंत्रण नहीं.. और इसी तरह समय बीतता जाता है, न हमें अपने दुखों का कारण समझ आता है और न ही उन्हें शांति से झेल पाना… वैसे आजकल महसूसने लगी हूँ, सुख-दुख विलोम नहीं, पूरक हैं, इक दूजे का हाथ पकड़कर चलते हैं… एक आया तो दूजा साथ लाया..
यूँ ही हंसते हंसते, साथियों से विलग हो जाती हूँ… आसपास की दुनिया से दूर, खुद में खो जाती हूँ.. किसी दिन, शायद दुखों से भी प्रभावित होना छोड़ पाऊँ…
Anupama
#kuchpanne
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