निराशा की गलियों में आशा का पता ढूंढती
मेरी बेबस मूक चेतना!
आंसुओं के सैलाब में खुशियों का तख्त तलाशती
मेरी आहत आत्मिक वेदना!
अपाहिजों के संसार में स्वस्थ मन सहेजती
मेरी निर्बल लाचार प्रेरणा!
कमज़ोर बेल सी मज़बूत पेड़ से लिपटती
मेरी ये निशस्त्र मूढ़ रचना!
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