मत रोको विचारों के प्रवाह को, शब्दों की धार को, नदी के बहाव को। रूकते ही आक्रामक हो जाते हैं। सब बंधन तोड़ रिसावों से बहने लगते हैं। कुरेदने लगते हैं धरातल, खोखला हो जाता है रसातल और टूटने लगती हैं वो दीवारें, वो अवरोध जो बीच आ खड़े हुए।
इसके विपरीत यदि एक छोटी सी जगह छोड़ दी जाए, जहां से रूकी विचारधारा बहती रहे, तो शब्दों की वर्णमाला स्वयं ऊर्जा स्तोत्र बन जाती है। समुद्र में खड़े lighthouse की तरह भटके राहगीरों को सही रास्ता दिखाने का ज़रिया। सकारात्मक सोच को हर तरफ बिखेरती, नकारात्मक क्रियाओं को रोकती।
आखिर सृजन हर रूप में विनाश से बेहतर!
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