घने थे बादल गहरा काला आकाश
मद्धम पड़ गया था सूर्य का प्रकाश
टूट कर गिर रहीं थीं पत्तियां
मासूम फूलों की संगियां
पल भर को उड़ती
फिर लहराकर गिर जाती
तेज़ हवाओं के शंखनाद में
अपना अस्तित्व ढूंढती
लगा खो सी गई मेरे दिल की आहट भी
उन पत्तों की सरसराहट में कहीं!
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