Hindi Poetry

थक गए बादल भी

थक गए शायद बादल भी उड़ते उड़ते
पिघल पिघल धरती पर आ रहे हैं
पानी के झीने से परदे की ओट में
शर्म से अपना मुंह छुपा रहे हैं।

धरा तो है ही स्नेहिल प्रेम भरी
नटखट बुलबुलियों को अंक में भर
नयी सरगम गा रही है
और प्रकृति की ये मदमस्त अदा
मेरे मन को लुभा रही है!

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