चोखेर बाली : आंख की किरकिरी.. क्यों ऐसा नाम दे कोई अपनी सखी को.. पर ये कहानी शायद घूमती ही असम्भव को सम्भव करने की मानव मन की ज़िद्दी धुरी पर है… बहुत पहले पढ़ी थी, फिर अनमने भाव से ऐष्वर्या की फिल्म भी अधूरी देखी.. पर आज netflix पर धारावाहिक रूप में इसे देखते हुए अलग ही अनुभव हुआ.. मन के पेचीदा तार, जो बिन सुर समझे बेताल ही उलझ जाया करते हैं.. जो आसानी से मिल जाये, उसका अनादर.. और अप्राप्य के पीछे भागने की अदम्य इच्छा… स्त्री का कोमल मन आघात से, किस हद तक निष्ठुर हो जाया करता है.. तिरस्कार, क्योंकर दर्प बन रिश्तों को लील जाता है, चोखेर बाली से बेहतर कभी कहीं नहीं महसूसा… तिस पर बिनोदिनी का गरिमापूर्ण जीवन अभिनीत करती राधिका आप्टे की भोली सी सूरत, दिल बींध गई… टैगोर का कथा संसार सदा नवीन है… और ये कहानियां असीम संभवनाएं समेटे हुए….
Anupama
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