Hindi Poetry

चितचोर सावन

टेढ़ा सा चाँद सुलगती साँसों और ठंडी आहों के बीच
खुद को तटस्थ रखने की असफल कोशिश में जुटा है
नटखट बदलियां उचक उचक कर पास आ रही हैं
मस्त हवाएं पीपल की डाली पर दरबारी गा रही हैँ
नन्हीं सितारियां टिमटिमाकर मौके का लुत्फ़ उठा रही हैं
फलक पर चकोरों की टोली कलाबाज़ियां दिखा रही है
फिज़ा में हिना की महक और चूड़ियों की खनक है
उफ्फ़! ये चितचोर सावन सिर्फ मौसम नहीं कुछ और है
Anupama

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