Fiction

चाह, अध्याय 3

अपने नाम से प्रोफ़ाइल बनाने में खतरा था। उसने किसी छद्म नाम से आईडी बनाने की सोची, पर जब दिमाग में गंद खेल दिखा रहा हो तो इंसान सोच भी कितना पाए? उसने सिर खुजलाते हुए ज़रा और ज़ोर डाला.. और अचानक से रोहन का चेहरा उसकी नज़रों के सामने घूम गया! रोहन उसके कैशियर का जवान होता बेटा था। नैन नक्श तीखे, घने बाल, लंबा कद और भोला सा चेहरा.. कल ही तो मिश्रा जी बेटे को नौकरी दिलवाने की गुज़ारिश करके गए थे, बायोडाटा और तस्वीर के साथ!

बस विनय के दिमाग में खतरनाक प्लान घर करने लगा। उसने रोहन के नाम से नकली ईमेल बनाई, फिर एक आईडी खोली, इंस्टा और एफबी पर एक साथ, ताकि जेनुइन लगे। शिक्षा के नाम पर दसवीं पास था विनय, पर शब्दों से खेलना जानता था.. ज़ुबां की लज़्ज़त उसकी खासियत थी, कम बोलता था पर दिल मोहने वाला.. उसने वैसा ही लिखना भी शुरु किया..

“बांसुरी की तान हो तुम, दिल का अरमान हो तुम
कहो तो जीवन हार दूं, सांसों की पहचान हो तुम”

पोस्ट करने के बाद वो पांच सात मिनट फोन की स्क्रीन निहारता रहा, फिर लेट गया.. आसान है लिखना, शब्दों से खेलना.. अब बस पाठक की तलाश थी, न दरअसल पाठिका! मछलियों के लिए जाल बिछा, वो चतुर मछुआरे की मुस्कान होंठों पर सजाए, गहरी नींद में सो गया.. अनुपमा सरकार

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