चाह, अध्याय 2
एक रात विनय यूं ही नेट पर सर्च कर रहा था, सामने कुछ लव कोट्स आए, पढ़े, अच्छे लगे.. वो और खोजने लगा.. प्रेम कविताएं दिखीं, सोशल साइट्स पर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, सब ओर, शब्द ही शब्द। प्रेम के अहसास में डूबे, कहीं सूफियाना तो कहीं रूमानी। वो पढ़ने में मशगूल हो चला.. उसने नोटिस किया कि कुछ ठीकठाक थीं और बाकी रद्दी। पर उन प्रेम कविताओं पर लाइक कमेंट्स की लाइन लगी हुई थी, खूबसूरत औरतें लंबी लंबी टिप्पणी के साथ अपनी उपस्थित दर्ज करवाती।
विनय की जगह कोई साधारण समझ बूझ का सही सोच वाला आदमी होता तो इन बातों में कुछ गलत न देखता.. पर विनय तो ठहरा तन का गुलाम। उसके लिए स्त्री सिर्फ भोग की वस्तु थी। पास बिस्तर पर लेटी पत्नी हो, ऑफिस में बैठने वाली रिसेप्शनिस्ट हो, पड़ोस की छत पर कपड़े सुखाती अधेड़ उम्र की महिला हो या घर में काम करने वाली नौकरानी। उसकी नज़रें और दिमाग तो जिस्म तक ही उलझे थे। एक ही सुख जानता था वो, और उसकी तुष्टि के लिए परदे में रहकर किया जा सकने वाला हर कर्म उसे मंज़ूर था!
फिर यहां तो पूरी पॉसिबिलिटी थी कि वो कुछ भी कहकर, बचा रह सकता था। विनय के दिमाग में प्लानिंग का बीज पड़ चुका था.. अनुपमा सरकार
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