पगली
हर तीसरे-चौथे दिन वो अस्पताल के गलियारे में दिख जाती। बेतरतीबी से लपेटी मैली-कुचैली साड़ी, उलझे बाल, टूटी चप्पल में समय से पहले ही बूढ़ी हो चुकी सूनी आंखों में अपना दर्द छुपाए, आते-जाते लोगों को निरीह भाव से ताकती रहती। नाम तो पता नहीं, सब पगली ही कहते थे […]
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