Fiction

पगली

पगली

हर तीसरे-चौथे दिन वो अस्पताल के गलियारे में दिख जाती। बेतरतीबी से लपेटी मैली-कुचैली साड़ी, उलझे बाल, टूटी चप्पल में समय से पहले ही बूढ़ी हो चुकी सूनी आंखों में अपना दर्द छुपाए, आते-जाते लोगों को निरीह भाव से ताकती रहती। नाम तो पता नहीं, सब पगली ही कहते थे […]

by July 4, 2016 Fiction
दफन

दफन

ज़मीन से कुछ फ़ीट नीचे दफन हैं साँसें… हर कोशिश मिट्टी के ढेले मुंह में भर जाती है… नासिका साथ छोड़ चुकी.. उसके पुटों में गहरे जाले हैं… हाथों में हरकत नहीं… पाँव बेड़ियों में उलझे.. सच पूछो तो तन, मन का आवरण है केवल… जब मन ही टूट जाए […]

by June 30, 2016 Articles, Fiction
किस्मत

किस्मत

महीने के दिन चढ़ने वाले थे। सरला के मन में रह-रह कर कौंध जाती सास की धमकी “अब की पेटसे न हुई तो वीरू का दूजा ब्याह करा दूंगी। कब तक बांझ को घर बिठाए रखूं। दस साल हो चले शादी को। लड़का जन्मना तो दूर, चूजा तक न उतरा […]

by June 12, 2016 Fiction
प्रतिमा

प्रतिमा

बहुत दिनों बाद सूरत देखी आज आईने में। निस्तेज चेहरा, आंखों के नीचे काले घेरे, फटे होंठ, रूखे बाल ! हैरां थी मैं उस अक्स को देखकर। क्या सचमुच ये हूँ मैं? वो हंसती-खिलखिलाती प्रीत कहां खो गई। याद है न तुम्हें, मेरा नाम ! तुम्हीं ने बिगाड़ा था या […]

by June 11, 2016 Fiction
ये सुबह प्यारी है

ये सुबह प्यारी है

सुबह के पांच बजते बजते, 10 बाय 10 के कमरे की कृत्रिम हवा बासी लगने लगी है… पलकें भारी हैं.. नींद अपना आधिपत्य त्यागने को तैयार नहीं.. पर मन भर चुका…सोच की दो बूँद और.. और बस छलक जाएगा.. मैं करवटें बदलती हूँ… पंछियों के चहचहाने की आवाज़ें सुनाई दे […]

by May 29, 2016 Fiction, Fursat ke Pal
व्यस्त हूँ

व्यस्त हूँ

व्यस्त हूँ, रहना चाहती हूँ…हर पल, हर घड़ी….फाइलों के ढेर में सिर झुकाए बैठी हूँ …..कंप्यूटर पर, बिन आवाज़ दौड़ती उँगलियाँ, शब्दों के आढ़े तिरछे रेखाचित्र उभार रहीं हैं…गर्म चाय का घूँट भरती हूँ…बेख्याली में बिस्किट का छोटा सा टुकड़ा देर तक कप में डूबा रहता है….वो कब ठोस से […]

by May 25, 2016 Fiction, Fursat ke Pal
सागर किनारे

सागर किनारे

सागर किनारे पाँव पाँव चलने का मन है आज… चांदनी रात में नहीँ बल्कि सिखर दुपहरे…. जब हर कोना सूरज की गर्मी से तप रहा हो… दूर दूर तक केवल सुनहली धूप हो…आँखों में चमचमाती किरणें….चेहरे पे पसीने की बूँदें…और मन में नव दिवस की उमंगें… भरपूर जीना है ये […]

by May 23, 2016 Fiction, Fursat ke Pal
वक्र चाल

वक्र चाल

दोपहर के दो बजे, थके मांदे परिंदे पेड़ों की ऊंची डालियाँ छोड़, नन्ही झाड़ियों में छाँव तलाश रहे हैं… आम के पेड़ पर कच्चे फल अनमने से हैं… गर्मी से उनकी खट्टास का आदान प्रदान जारी है… बोझिल पत्ते हौले हौले मंत्रजाप कर रहे हैं… घरों के दरवाज़े खिड़कियां असहनीय […]

by May 18, 2016 Fiction, Fursat ke Pal, Nano fiction