Fiction

Ways of Life

Ways of Life

As I sit calmly, nodding, smiling, without any forced inputs, each one of them begins to talk about their unique problems, goals, achievements… their own, very own understanding of life… And then it boils down to one thing… We are puppets, doing our best, rest is in His hands… Yes, […]

by January 9, 2017 Fiction, Nano fiction
वो खिड़की

वो खिड़की

लाल ईंटों की दीवार, टूटा-फूटा कूलर, बाल्कनी में धूल चाटता पुराना फर्नीचर। किसी आम मध्यम वर्गीय परिवार का ही लगता था वो घर। पर नहीं, कुछ तो खास था उसमें। आते-जाते लोगों की नज़र अक्सर उलझ जाती थी। गली का सबसे अनोखा मकान था वो, जामनी घर के नाम से […]

by January 5, 2017 Fiction
मूर्तिकार

मूर्तिकार

गज़ब का मूर्तिकार था राघव। छैनी की सधी ठकठक और हथौड़े की हल्की चोट से निर्जीव पाषाण में कुछ यूं जान फूंकता कि मूर्ति बरबस मुंह से बोल पड़ती। जीवंत हो उठतीं वे मूक प्रतिमाएं जो कभी केवल मील का पत्थर हुआ करती थीं। लोग कहते थे कोई जादूगर था। […]

by January 4, 2017 Fiction
मकड़ी

मकड़ी

बात कुछ पुरानी है पर उतनी भी नहीं कि भुलाई जा सके.. कहानी की नायिका एक मकड़ी… ऐसी-वैसी नहीं, गज़ब की जादू भरी… हाँ, दूसरों से अलग थी, खुद में खोयी, औरों से दूरी बनाए, जाने क्या-क्या सोचा करती.. इंसान होती तो दार्शनिक या कलाकार कहलाती.. पर वो थी बेचारी […]

by September 29, 2016 Fiction
मिसिज़ जोशी

मिसिज़ जोशी

बातों का सिलसिला अक्सर लंबा खिंचता है… चाय की छोटी सी प्याली.. न न फूल-पत्ती वाली खूबसूरत नहीं.. बल्कि वही स्ट्राइप्स वाले थरमोफोर्म के कप में दो घूँट भूरा गर्म पानी और उस पर चिपकी गाढ़ी मलाई.. हाथ में लिए पन्द्रह मिनट हो चले… चाय जाने कैसे द्रौपदी के अक्षय […]

by September 10, 2016 Fiction
दो लड़ाके

दो लड़ाके

ये वक़्त भी न.. अजब पहेली है.. जाने कैसे इसे हमारी बेक़रारी की खबर हो जाती है… जिस दिन आप जल्दी में हों ठीक उसी दिन ये थम सा जाता है… घड़ी की सुइयां चिपक सी जाती हैं.. अक्खड़ बन सेकंड की सुई मिनट्स से भी धीमे चलती है.. और […]

by August 4, 2016 Fiction
खाके

खाके

जानते हो ये दुनिया अब अच्छी नहीं लगती मुझे.. अकेली हो गई हूँ.. थी तो पहले भी पर तब महसूस नहीं होता था… दबा दीं थी भावनाएं.. उन पर मुट्ठियाँ भर भर मिट्टी डाली थी… दफन कर दिया था जज़्बातों को.. ख़्वाबों का गला घोटकर संकरी शीशी में कैद कर […]

by July 17, 2016 Fiction
मेट्रो स्टेशन तक

मेट्रो स्टेशन तक

कीचड़ में सने पाँव भी कभी कभी महंगे परफ्यूम से कहीं ज़्यादा सुख देते हैं… जब मन मौसम छटपटा कर भीग जाना चाहे तो उमस की भभकती आग भी सुहानी लगने लगती है…एक उम्मीद साथ लाती है न … भीग जाने की…. इंतज़ार जब हद से गुज़र जाये तो वस्ल […]

by July 17, 2016 Fiction, Fursat ke Pal