जाते जाते
मन जब बहुत विचलित हो जाता है तो दूर तक देखने का प्रयास करती हूँ… इतनी दूर जहां तारों का जमघट, कंक्रीट के जंगल खत्म हो जाएं.. नज़र आएं तो केवल पेड़ों की फुगनियाँ… बित्ते भर की दूरी पर टहनियाँ टकराकर, मानो एक दूजे को आलिंगन में भरती हों… रूई […]
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