कल रात
कल रात आंगन में चक्कर लगा रही थी। खरबूजे सा चांद अशोक के ठीक पीछे से झांक रहा था जैसे मुझे न्योता दे रहा हो, आसमान में आने का, धीमे-धीमे बादलों की सीढ़ियों पर पांव रख गुरु को कनखियों से देख, उसकी समझ-बूझ को खुद में बसाने का। कैसा धुला-धुला […]
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