Review

Chhalaang, Movie

कुछ फिल्में अपने डायलॉग से जानी जाती हैं तो कुछ के डायलॉग ही मूवी की कहानी बयां कर देते हैं… “चौड़ भी न औकात देखकर रखनी चाहिए… 70 का बन्दा, 150 किलो की रखेगा तो बोझ से दबेगा ही” 🙄🙄 अजब सी है न लाइन और अब इसे इमेजिन कीजिए […]

by November 22, 2020 Review

Ludo, Movie

लाइफ और लूडो बिल्कुल एक जैसे हैं… हर गोटी का अपना ही रास्ता और उस पर आने वाली मुश्किलें और फ़ायदे भी उसके बेहद निजी… और फिर खेल तब तक ख़त्म नहीं, जब तक हर गोटी घर न पहुंच जाए… जी, एकदम नया कॉन्सेप्ट, बिल्कुल नई कहानी और काफ़ी मज़ेदार […]

by November 22, 2020 Review
अन्तिम प्यार, रवीन्द्रनाथ टैगोर

अन्तिम प्यार, रवीन्द्रनाथ टैगोर

कला के लिए किस पायदान तक उतरा जा सकता है? क्या निजी भावनाओं का कोई मोल होता भी है किसी कलाकार के लिए? या केवल प्रसिद्धि और येन केन प्रकारेण हर सही गलत, सुख दुख, संवेदना, वेदना को ताक़ पर रखा जा सकता है? शायद आपको लगे कि किसी हालिया […]

by September 18, 2020 Review
बाल भगवान, स्वदेश दीपक

बाल भगवान, स्वदेश दीपक

क्रूरता का नंगा नाच देखना हो तो इंसान के सामने लालच की एक बोटी लटका दीजिए, वह सारी मानवता भूल कर, बड़े से बड़े पाप को करते हुए असीम प्रसन्नता और संतोष अनुभव करेगा। और किसी भुलावे में मत रहिएगा, यह लालच अक्सर आपसी रिश्तों पर ही सबसे ज़्यादा हावी […]

by August 19, 2020 Review
बिराज बहू, शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

बिराज बहू, शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

स्त्री और पुरुष के पति पत्नी होने पर भी जिस आपसी सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए, आज तक समाज तैयार नहीं, उसे आज से 150 वर्ष पूर्व शरत चन्द्र ने अपने उपन्यास में कितनी सहजता से उकेर दिया, पढ़कर विस्मित हूं। बिराज बहू, एक ऐसा उपन्यास जिसकी नायिका जितनी स्वाभिमानी […]

by August 14, 2020 Review
Sarbjit, Movie Review

Sarbjit, Movie Review

Sarbjit, another biopic after Shakuntala, though I am late in discovering this movie. It was released in 2016 and available on prime for a long long time. But, one way or the other, it kept sliding out of my watch list. And, now after four years, I have finally watched […]

by August 9, 2020 Review
हाथी दांत पर उकेरे बुद्ध के जीवन दृश्य

Shakuntala Devi, Movie Review

ज़िन्दगी में अक्सर हम बिल्कुल वैसे ही बन जाते हैं, जैसे हम नहीं होना चाहते। जिन बातों से हमें चिढ़ होती है, जाने अनजाने उन्हीं में उलझते हैं। जैसे लोग हमें नहीं भाते, वही हमसे बार बार टकराते हैं। और याद कीजिएगा वो चेहरा, वो व्यक्तित्व, वो अवगुण, जिनसे आप […]

by August 1, 2020 Review
अम्मा, कृष्ण कांत अरोरा

अम्मा, कृष्ण कांत अरोरा

कहानियों की एक विशेषता है कि वो अपने पाठक खुद ढूंढ लिया करती हैं। हमेशा से मानती अाई हूं कि हम किताबों तक नहीं, बल्कि किताबें हम तक पहुंचा करती हैं। किसी न किसी माध्यम, किसी न किसी रूप में, आहिस्ता से हमारे जीवन में प्रवेश करती हुईं। सो, कल […]

by July 24, 2020 Review