Nano fiction

नीरवता

नीरवता

मायूसियों का धुँआ चाँद को छिपा सकता है.. बुझा नहीं सकता… रेतीली आंधियां पल भर को दिशा भ्रमित कर सकती हैं.. जीवन भर के लिये भटका नहीं सकतीं… नीरसता उदास काँटों सी कचोट भले ले… गुलाबों की महक छीन नहीं सकती… मानव मन की जिजीविषा अमर है और रहेगी… क्षणभंगुर […]

मनपंछी

मनपंछी

मनपंछी प्रातःकाल के सूर्य को देखकर जगता है… कड़ी धूप में अपनी परछाईं में शीतलता खोजता है… साँझ ढले घड़ी भर सांस ले.. अटारी से उतरते सूरज को देख मायूस होने लगता है… कि शर्मीला सा चाँद आँगन में खिल आता है… और मनचकोर चांदनी की अठखेलियों में फिर से […]

प्रेम अबूझ पहेली

प्रेम अबूझ पहेली

प्रेम अबूझ पहेली है या केवल एक भ्रम….चिरकाल से मानव मन की सबसे जटिल गुत्थी शायद इस अहसास को न समझ पाना ही है…क्या प्रेम काल परिस्थिति भाव अनुसार बदल जाता है या फिर केवल परिभाषाएं बदलती हैं …कुछ वैसे ही जैसे पानी उबलकर भाप में बदलते ही छुअन से […]

by May 2, 2016 Fiction, Nano fiction

विस्थापन

मैडमजी कमिसन तो आ गया, एरियल कब मिलेगा? भाषा का कचूमर बनाती, आवाज़ सुन, याद आ गए मुझे माली काका। कैंडेलबा, देहेलबा, बूग्नबा की पुकार लगाते। मैं पेट पकड़कर हंसती, जब वो केसवा बिस्किट संग लिप्टनवा चाह की चुस्कियां लेते। पर आज सूझा। विस्थापित भाषा हो या इंसान, दूसरों के […]

by November 27, 2015 Nano fiction