Hindi Poetry
प्रेम या देह
प्रेम प्रेम प्रेम रटने वाले देह देह देह चखने वाले रचेंगें शब्द बेचेंगें भाव और फिर आंखें मूंद, मौन धर दर्शन की पीठ चढ़ लेंगे एक और कश खीसें निपोर कहेंगे स्त्री तुम महान हो हमारा सम्मान हो यूं ही बेवकूफ बनती रहना….. Anupama Sarkar
प्रमाद
पक्ष विपक्ष तर्क वितर्क के तराजू में भाव हल्के पड़ते जाते हैं जर्जर होते तन और क्षीण पड़ते मन के उद्गार कंठ में सिमटे रह जाते हैं मंथर बुद्धि क्षिथिल धड़कन कांपते हाथ फिसलते पांव बढ़ती आयु के ही परिचायक नहीं कहीं भीतर, गहरे, बहुत गहरे रिसते घावों की टीस […]
भेड़ें
मिमियाती भेड़ें लीक पर चलती इक दूजे से टकराती भेड़ें बाड़े की सुरक्षा घास पानी को ललचाती भेड़ें सालों की दहशत यादों की गर्त में खौफज़दा गिड़गिड़ाती भेड़ें सालों पहले हवा में डंडा लहराया था मेमने का दिल घबराया था बाड़ा टूटने न पाए लकीर छूटने न पाए गडरिए ने […]
काफ्का और मैं
हवा में हल्की सी ठंडक, उनींदी अंखियां और खिड़की से छनकर आती धूपिली गोलियां अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से उठने की कोशिश में यकायक धरती डोलती महसूस हुई भूकम्प! सोचते ही नस नस झनझना उठी पर नहीं, आसपास नज़र दौड़ाई मैं बिस्तर पर नहीं, ट्रेन में थी शीशे के पार, […]
प्रेमी
तुम शिद्दत से ढूंढ़ते रहे वो इंसान जो मेरे होंठों पर मुस्कान और आंखों में चमक ले आता है तुमने मेरे आसपास के लोगों को टटोला जानना चाहा कि कौन, कब, किस तरह मेरी छोटी सी ज़िन्दगी में घुसपैठ बनाए है कहां से छलकता है वो अमृत जिसके घूंट भर […]
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