सनम
हौले से मैना मुस्काई कोयल भी ज़रा सी शर्माई तितली भंवरे फूलों से कहें आ फागुन के गीत हम मिलके बुनें आमों की कच्ची कलियां चुनें सेमल की पत्तियों को हम गिनें वो उड़ती चीलें अलबेली वो डरती सहमी गिलहरी हाथों में हाथ जो थाम लें हम छोड़ें न साथ […]
हौले से मैना मुस्काई कोयल भी ज़रा सी शर्माई तितली भंवरे फूलों से कहें आ फागुन के गीत हम मिलके बुनें आमों की कच्ची कलियां चुनें सेमल की पत्तियों को हम गिनें वो उड़ती चीलें अलबेली वो डरती सहमी गिलहरी हाथों में हाथ जो थाम लें हम छोड़ें न साथ […]
शब्द और रंग, कविता और चित्र.. पूरक हैं इक दूजे के.. भाव उमड़े, कैनवस पर बहे और सज चले.. लगभग साढ़े चार साल पहले हिंदी में पहली कविता लिखी थी.. जाने कैसे ये पंक्तियां मन में अटक गईं थीं, ध्यान हटता ही न था इनसे “यहां की ज़मीं, यहां का […]
अखबार नहीं पढ़ती अब पोर जलते हैं मेरे समाचार नहीं देखती मन हुलसता है पर चली आती हैं गर्म हवाएं दिल जलाती, आत्मा कचोटती पक्ष प्रतिपक्ष निर्धारित करती इंसानियत अपने ही पांव पर कुल्हाडा मार दूसरों के ज़ख्म पर नमक मलती चुप हो गई हूं, नहीं जानती मैं गलत हूं […]
प्रकृति बन पौरुष सहर्ष स्वीकारती तुम सभ्यता के उत्थान में योगदान देती तुम स्वयं से पहले, परिवार, समाज को पूजती तुम सदियों से बर्बरता झेल, कोमल ह्रदय सहेजती तुम कुछ न समझा तुमने जानते बूझते आंखें मूंदे रही तुम्हें आभास भी न हुआ हर जगह, हर समय तुम केवल देह […]
भूलना हो तो इतना याद करो कि वो अहसास नहीं अभ्यास बन जाए वास्तविक अनुभव नहीं आभास बन जाए पल पल रटा गया नाम अस्तित्व खो बैठता है क्षण क्षण झलकता प्रतिबिंब निर्जीव हो उठता है मूर्तियां गढ़ दो, आदर्श खो जायेंगे सूक्तियां रच दो, सूत्र मिट जाएंगे बांधो काल्पनिक […]
तुमने रंगीनियों को चाहा शीशों से इमारतों को सजा दिया मैंने रंगों को चाहा तितलियों को हथेली पर बिठा लिया तुमने संगीत को चाहा सुरों को राग ताल में साध लिया मैंने सुरों को चाहा बुलबुल के गीतों में खुद को भुला दिया तुमने अमीर होना चाहा सिक्कों की खनक […]
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