Hindi Poetry

अधजले कागज़ के टुकड़े

बिखरे थे अनजान गली के मोड़ पर
अधजले कागज़ के कुछ टुकड़े
मुड़े तुड़े कुछ काले कुछ उजले।

थे शायद किसी टूटे दिल की
दर्द भरी सिसकियां
प्रेम से संजोई गुस्से में जलाई
आखिरी पातियां।

या थे किसी बेरोज़गार के नामंज़ूर हुए
आवेदनों की वेदना
बार बार की विफलता से हताश हुई
नाउम्मीद चेतना।

या फिर थे किसी दिलजले कवि के
बेतरतीबी से फेंके अधूरे मुखड़े
बिखरे थे जो अनजान गली के
मोड़ पर वो अधजले कागज़ के टुकड़े!

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