Fursat ke Pal

बुनाई

कविताएँ मन के हथकरघे पर हौले-हौले आकार लेतीं हैं.. ज़मीन का सौंधापन, दिल की धड़कन, अहसासों के रंग साथ लिए आतीं हैं.. निपुण बुनकर अपनी उँगलियों पर थिरकते शब्दों को ताने-बाने में उलझाता नहीं… न ही वर्तनी को लंगड़ी कर अर्थ का अनर्थ करवाता है… उसे नहीं चाहिए क्षणिक उत्तेजना, आत्मिक सुख का शंखनाद ही भाता है.. नहीं करना उसे, ढोलक की थाप पर अनर्गल नृत्य.. वरन् ह्रदय राग की मधुर तान पर बिंदु से बिंदु जोड़ सेतु बनाना है… मानस पटल पर रेखांकित चित्रों को, ढालना है कविताओं में, ताकि अक्षर-अक्षर जीवन्त हो लहराएं, किसी सुकन्या के दुपट्टे के छोर पर और नैसर्गिक सौंदर्य का बोध करा जाएंं.. हथकरघे पर बुनी कविताएँ सहज हुआ करतीं हैं सुलभ नहीं !!
Anupama
#fursatkepal

Leave a Reply