वो बताशे सा चाँद देखा तुमने
तारों को धत्ता बताता
स्याह आसमां में नूर बरसाता
बदलियों संग अठखेलियां कर रहा
कभी शरारती हवा हौले से छू लेती है तो
शर्म से लाल हो उठते हैं उसके गोरे गाल
कजली रात, मुंह में आँचल दबाए
नशीली मुस्कान बिखेर रही है
फिज़ा में जादू घुल रहा है
ये वक़्त धीमे धीमे बसन्त की आहट
कलेजे में छिपाए, नए ख़्वाब बुन रहा है
पुन्नो की रात, चाँद का साथ और…
और चाहिए भी क्या…
जब कुदरत रंग छिटकाये, हाथ दुआ में उठ जाएँ
इस बताशे सी मिठास तेरी ज़िंदगी में घुल जाए !!
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