Hindi Poetry

बताशे सा चाँद

वो बताशे सा चाँद देखा तुमने
तारों को धत्ता बताता
स्याह आसमां में नूर बरसाता
बदलियों संग अठखेलियां कर रहा
कभी शरारती हवा हौले से छू लेती है तो
शर्म से लाल हो उठते हैं उसके गोरे गाल
कजली रात, मुंह में आँचल दबाए
नशीली मुस्कान बिखेर रही है
फिज़ा में जादू घुल रहा है
ये वक़्त धीमे धीमे बसन्त की आहट
कलेजे में छिपाए, नए ख़्वाब बुन रहा है
पुन्नो की रात, चाँद का साथ और…
और चाहिए भी क्या…
जब कुदरत रंग छिटकाये, हाथ दुआ में उठ जाएँ
इस बताशे सी मिठास तेरी ज़िंदगी में घुल जाए !!

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