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ब्रह्म कमल, कृष्ण कमल

इस पौधे को अक्सर Braham Kamal कहा जाता है, पर दरअसल यह एक कैक्टस ऑर्चिड है.. रात में खुशबू वाले फूल, अक्सर मानसून के आसपास खिलते हैं.. साइंटिफिक नाम Epiphyllum Oxypetalum और दूसरा पॉपुलर नाम गुल बकावली है..

जबकि ब्रह्म कमल, उत्तराखंड का राज्य फूल है.. कमल कहने के बावजूद मिट्टी में ही खिलता है, पानी में नहीं.. ये फूल शुभ माने जाते हैं और देवता को अर्पित किए जाते हैं.. साइंटिफिक नाम Saussurea Obvallata है

ब्रह्मकमल कमल की अन्य प्रजातियों के विपरीत पानी में नहीं वरन धरती पर खिलता है.. सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय की पहाड़ी ढलानों या 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियाँ हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं।

उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है।भारत के अन्य भागों में इसे और भी कई नामों से पुकारा जाता है जैसे – हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल…

जबकि कृष्ण कमल इस से बिल्कुल हटकर है। इस फूल का अंग्रेज़ी नाम तो Passion Flower है, पर हमको तो भा गया इसे कृष्ण कमल पुकारना ही.. पहले पहल लगा, शायद कृष्ण के समान नील वर्ण है, इसलिए कहते होंगें.. पर फिर पढ़ी इसकी मिथकीय कहानी.

100 पंखुड़ियां हैं नीली, कौरवों के रूप में… 5 पंखुड़ियां पीली/हरी, पांडव.. बीच में तीन पराग, ब्रह्मा, विष्णु, महेश.. और… बिल्कुल बीच में सुदर्शन चक्र…

अब ये न सोचिएगा कि कैसी दूर की कोड़ी.. न जी, बस खूबसूरती देखिए, और मिथक से मिलान का आंनद उठाइए… प्रकृति का हर रूप अनोखा 🙂
Anupama Sarkar
कहानी और पिक दोनों गूगल के सौजन्य से

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