मम्मी के साथ टीवी पर पुराने गाने देखना मेरी दिनचर्या में शुमार है.. वे तो बस सुनती हैं, पर रंगीन चित्रों में खो अक्सर मैं ही जाती हूं.. chromecast के ज़माने में सीधा सादा टीवी, यूट्यूब की मदद से ऑन डिमांड चित्रहार में तब्दील हो चला है.. आन मिलो सजना, अपने पूरे शबाब पर है और मैं राजेश खन्ना और आशा पारिख की उछलकूद में खोई हूं…
अचानक ध्यान में आया कि राजेश खन्ना के गीतों के मधुर और लोकप्रिय होने में जितना हाथ उस समय के सिंगर लिरिसिस्ट और कम्पोज़र का है, उस से थोड़ा ज़्यादा ही उनकी अपनी निश्छल मुस्कान का भी है.. संगीत लहरियों पर ज़रा ज़रा सर झुलाते हुए, एक हाथ में जाम लिए लड़खड़ाते या वादियों में बंद गले की चटख अचकन पहने, राजेश किसी भी situation में आपका फोकस सिर्फ और सिर्फ खुद पर रखने में पूर्णतया सक्षम हैं..
उनसे ठीक उलटे शम्मी कपूर के लटके झटके देखकर आप झट स्क्रीन से ध्यान हटा, आंखें बन्द कर खुद के झूमने में मशगूल हो सकते हैं..
देवानंद इन दोनों के बीच में पुल सरीखे लटके हैं.. थोड़ा मुंह बनाकर मधुबाला के साथ इश्क़ की नोंक झोंक करते स्वीट लगते हैं पर वहीदा जैसी संजीदा कलाकार के सामने हत्थे से उखड़े नज़र आते हैं..
गुरुदत्त मुझे मुस्कुराते हुए भी थोड़े से परेशान लगते हैं तो इमरान हाशमी रोते हुए भी स्लाइटली कॉमिकल.. ये अलग बात कि दोनों पर picturized songs कर्णप्रिय हैं.. पर अक्सर आंखें बन्द कर लेती हूं, कि सिर्फ सुर सरगम ही बेड़ा पार लगवाएंगे.. इन्हें देखा तो….
खैर.. अमिताभ गाते हुए भी एक्शन सीन का सा असर रखते हैं तो अजय देवगन बस स्क्रीन पर इधर से उधर यूनिफॉर्म पहनकर चल भर दें, वही काफी है..
नसीर हों या इरफ़ान, मुझे कभी नाचते गाते अच्छे नहीं लगे, बस डायलॉग्स बोल लिया करें.. अमोल और फारुख तो खैर बने ही हैं बोलने से ज़्यादा, रुक रुक कर अपनी बात कहने के लिए.. सो उनके गीतों में भी वही फबता है…
आमिर, सलमान कुछ खास जमे नहीं कभी.. उनकी heroines बेहतर लगती हैं मुझे, सो ध्यान जूही और ऐश्वरया पर भटका लेती हूं.. शाहरुख इस मामले में कहीं ज़्यादा लकी हैं.. उनकी जबर फैन रही हूं, हालांकि बहुत बाद में समझ आया कि वो सिर्फ मुस्कुराते हुए, हाथ पांव पटकते हुए नहीं.. बल्कि बेहद उम्दा गीतकारों और गायकों के ज़रिए मेरे दिल में बसे थे, सो अब अभिजीत, शानू, शान और सोनू को सुनकर, शाहरुख को ज़रा पीछे धकेल देती हूं…
वैसे आजकल आयुष्मान भी भाते हैं, एक्टिंग कमाल है बन्दे की.. शराफत का चोला पहने पहने, सिगरेट मुंह में फिट कर, ऐसा टेढ़ा मुस्कुराएंगे कि खुद ब खुद कह बैठो, ओ बेटे!!
रणवीर की एनर्जी की दीवानी थी कभी, कपूर नहीं सिंह… उसने मारी एंट्रियां, कभी लूप पर सुनती थी.. खैर कपूर तो मुझे ज़्यादातर काग़ज़ के पुतले ही नज़र आते हैं.. चाहे वो अर्जुन हो या अनिल..
हाल फिलहाल बैकग्राउंड में बज रहा है, ताली हो! और मैं लिखना खत्म करते करते सोच रही हूं कि वुडन तो राखी भी बहुत लगती हैं मुझे, पर आज के लिए इतनी बकबक ही बहुत, आपकी पेशंस की भी तो कोई लिमिट है न!!! 😋
Anupama Sarkar
#बातें_बेतुकी
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