पढ़ा था कभी किताबों में
धूल के बादलों का लहराते हुए आना
इक दूजे में समाना और सितारा हो जाना
हाइड्रोजन का लिपटना, हीलियम बन जाना
अंतहीन ऊर्जा, अनंत प्रकाश और अनायास
इक चमकीले तारे का अंतरिक्ष में मुस्कुराना
हां, पढ़ा था कभी किताबों में,
मैंने सितारों का सूरज हो जाना
कुल जमा बारह साल की थी
विज्ञान की सुघड़ छात्रा, प्रकृति की अनगढ़ शिष्या
हर बात को अपनी कसौटियों पर तौलती
हर तारे में अपना अंश खोजती
चकित हो निहारती स्याह आसमां
उद्वेलित हो खोजती कोई ग्रह नया
पढ़ा जो था किताबों में मैंने
इक धमाके से नव सृजन हो जाना
समय बीतता गया,
हुआ किशोर मन यौवन के पथ पर अग्रसर
और सितारों की कहानियां सख्त राहों में खो गयीं
पर मेरा आकाश से नाता न छूटा
कभी उस आग के गोले पर मुग्ध हो जाती
कभी शीतल चंदा की बांहों में झूल झूल जाती
और फिर एक दिन पढ़ा किताबों में
ब्लैक होल का अस्तित्व में आना
वही मेरे बचपन का तारा, परिस्थितियों का मारा
खुद से उलझते, खुद में सिमटते
जाने कब अपना ही दुश्मन हो गया
कठिनाइयों के बादल, उसे धूल चटाने लगे
परिधियों के घेरे, परिपाटियों के झमेले, परिभाषाओं के रेले
देते अस्तित्व को चुनौती और धीमे धीमे हरते ऊर्जा उसकी
दुखी थी, उसका दर्द मेरी नसों में बह रहा था
रह रह कर उसका यूं गुम जाना मेरी जान ले रहा था
पर आज फिर पढ़ा किताबों में
मानव मस्तिष्क भी सितारों सा ही जन्मता है
स्नायु स्नायु स्वतंत्र, परिवेश अनुसार ढलने या
अपनी राह चुनने में सर्वथा समर्थ
उनका इक दूजे में समाना, एक इकाई हो जाना
दरअसल अंत नहीं शुरुआत है
खुद को समझने गहरे जाना होगा
दुनियादारी के हल्के फुल्के बादलों के बीचों-बीच
मुझे एक ब्लैक होल बन जाना होगा
तटस्थ, समाधिस्थ, स्व-तंत्र
अनादिकाल तक अनंत आकाश में मैं
और वो लुप्त होता सितारा
वही जो पढ़ा था कभी किताबों में
और अब जीता है संग मेरे, मेरा अंश बनकर…
Anupama
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