Articles

भ्रम

पवित्र अपवित्र से परे भी सोच लीजिए.. आपका शरीर आपका मन आपके कर्म आपकी आस्था.. निजी है सब..

सार्वजनिक मुद्दों के चलते अपनी निजता को प्रदर्शित करती स्त्रियां भी वहीं खड़ी होकर सोच रही हैं, जहां खड़े होकर, प्रकृति का आदर करते हुए रजस्वला स्त्रियों को अपनी सुविधा से रहने के विकल्प देने की बजाय, नियमों की कड़ियां पहनाने वाले ढकोसलेबाजों ने कभी सोचा होगा…

समाज से लड़ते हुए ईश्वर को पूजना छोड़ा था.. अब ईश्वर से लड़ते हुए समाज में वर्चस्व स्थापित करने की कवायद शुरु!! सच में, इसमें आज़ादी या अपनी इच्छा जैसा कुछ महसूस होता है आपको? या फिर सिर्फ भीड़ की भेड़चाल है, जिसमें पलड़ा भारी करने के लिए कभी padman आपको भरमाता है तो कभी Sabrimala..

महत्वपूर्ण हैं ये पांच दिन, आपकी शारीरिक संरचना और हार्मोन्स के चलते मन तन को कई तरह से उद्वेलित करते.. ज़ाहिर है सबका मन तन अलग है, तो उनमें आने वाले भाव और असर भी जुदा ही होंगें..

पूर्णतया निजी होता है ये समय, किसी भी महिला के लिए, इसे वही रहने दें.. पूंजीवादी राजनैतिक बहसों में मत ही उलझाएं… अभी अभी तो शरीर से हटकर, खुद को इंसान के रूप में स्थापित करने में सक्षम हुई हैं स्त्रियां.. फिर से सारी चर्चा तन पर ही केन्द्रित क्यों करनी!
Anupama Sarkar

Leave a Reply