Hindi Poetry

भेड़ें

मिमियाती भेड़ें
लीक पर चलती
इक दूजे से टकराती भेड़ें
बाड़े की सुरक्षा
घास पानी को ललचाती भेड़ें
सालों की दहशत
यादों की गर्त में
खौफज़दा गिड़गिड़ाती भेड़ें

सालों पहले
हवा में डंडा लहराया था
मेमने का दिल घबराया था
बाड़ा टूटने न पाए
लकीर छूटने न पाए
गडरिए ने हुंकारा लगाया था

दिन बदले, रातें हुई फना
पर न बदला वो पन्ना
हर भेड़ अब मेमने को समझाती है
अपने बचपन का वो पाठ रटाती है
सुरक्षित है घेरा, चाबुक मार, सिखाती है

अब गड़रिया पास नहीं आता
दूर बैठा ताज़ा काटी भेड़ का गोश्त चबाता है
बाकी भेड़ें मैं मैं चिल्लाती हैं
मिमियाती टकराती भरभराती भेड़ें…
Anupama Sarkar

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