Hindi Poetry

बाकी

न जीने की जुस्तजू न मरने का इरादा बाकी है
रक़्स ओ अक़्स हुए फना रस्म ए कफ़न बाकी है

ख्यालोंं के अलाव में, मासूम हर्फ़ राख हुए
टुकड़ों का होश नहीं, मुठ्ठी भर रूह बाकी है

ज़लज़ले के खेल में, ख्वाब सारे गर्त हुए
ज़ख्मों का मालूम नहीं, चोटों के निशां बाकी है

न हक़ीक़त का गुमां कोई न अकीदत के जुमले
खून ओ रंजिश से परे न कोई अदावत बाकी है

न जीने की जुस्तजू न मरने का इरादा बाकी है
रक़्स ओ अक़्स हुए फना रस्म ए कफ़न बाकी है
Anupama

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