“बला”
भागते शहर का व्यस्त चौराहा और उसके बीचोंबीच बनी सीमेंट की तिकोनी पट्टी, कबूतरों का जमघट-सा लगा रहता दिनभर। पंछियों को चारा देने से आई बला टल जो जाती है। पर सांझ ढलते ही नज़ारा बदल जाता। मुन्नू चुपचाप झाड़ू ले, बिखरे दानों को समेट लाता। बला की कौन जाने, भूख तो मिट ही जाती।
Anupama(Laghu Katha)
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