कल बहुत वक्त बाद आज तक का वीडियो देखा, बहस चल रही थी बाबा रामदेव और आईएमए के डॉक्टर राजन और डॉक्टर लेले के बीच… स्वस्थ और अच्छी डिबेट होती, आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच, तो शायद पूरा देखती! पर अफसोस योग और आयुर्वेद के जिस रूप को रामदेव प्रमोट करते हैं, वह मुझे कभी पचा नहीं! वे साइंस से लड़ने भिड़ने की बात करते हुए अपनी लैब्स का हवाला देते हैं। जी, बिल्कुल एकदम सही बात कि आयुर्वेदिक दवाएं भी lab में ही बनती हैं, बन सकती हैं। किसी प्राकृतिक बूटी, फल, मूल, खनिज, किसी भी पदार्थ को लेकर उसकी पोटेंसी कई गुना बढ़ा देना ताकि वो बीमारी से लड़कर काया को निरोगी बना सके, उसके लिए साइंस ही चाहिए और है भी, स्टेप बाय स्टेप प्रॉपर प्रोसीजर्स, जो डॉक्यूमेंटेड हैं और अब मेकेनिकल भी किए जा रहे हैं।
पर अफसोस कि बाबा रामदेव योग और आयुर्वेद के जिस रूप को जिस तरह लोगों पर थोपने की कोशिश में लगे हैं, और बहुत हद तक कामयाब भी हो चुके हैं, उसका साइंस से दूर दूर तक लेना देना नहीं, हां साइकोलॉजी से ज़रूर है। लोगों को डरा कर, ज़ोर से चिल्ला कर, योग के नामपर एरोबिक्स की कवायद कराते हुए बाबा जी, दरअसल सिर्फ और सिर्फ दबंगई के बल पर अपना फायदा और एक बहुत पुराने विज्ञान का बंटाधार करने में जुटे हैं!
घर में योग और आयुर्वेद का माहौल मिला है। पापा और मामा जी दोनों ही योग करते थे, बचपन से ही आसन और आयुर्वेद की किताबें, जल नेति, शंख प्रक्षालन की विधि देखते समझते बड़ी हुई हूं। बच्चों का शरीर लचीला होता है, सो मैं मुश्किल से मुश्किल आसन भी झट कर लेती थी। पापा इंप्रेस होते पर साथ ही ध्यान दिलाते कि योग का मतलब सिर्फ मुद्रा बना लेना नहीं, उसे सही तरीके से धीमी रफ्तार से करना है, सांस के अंदर बाहर जाने की क्रिया से अवगत होना है, उन चक्रों (एनर्जी सेंटर्स) पर ध्यान देना है, जिन पर किसी भी आसन का प्रभाव आ रहा है। एक निश्चित समय तक एक ही मुद्रा में बने रहना और तन को इस तरह बैलेंस रखना कि आप अपनी प्रकृति के विपरीत नहीं, बल्कि उसके साथ तारतम्य बिठाते हुए, बिना किसी ख़ास एफर्ट के योगासन कर पाएं।
सच कहूं, तब ये बातें मुझे बोरिंग लेक्चर लगती थीं, सोचती पापा से फास्ट मैं कर लेती हूं न, शायद इसलिए ज्ञान देते हैं! होता है, ज्ञान लेना, बात समझना आसान नहीं, देना ज़रूर सरल है, और यह बात मैंने बहुत सालों में सीखी!
योग और आयुर्वेद, मेरे जीवन का अभिन्न अंग रहे। इनकी महत्ता से वाकिफ हूं। पापा अस्थमा होने के बाद प्राणायाम और योग से प्रभावित हुए थे, आयुर्वेद दवाएं उनके लिए राम बाण का असर रखती थीं, जबकि एलोपैथी उनके शरीर को और कुम्हला देती। सो पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकती हूं कि मैंने योग और आयुर्वेद का प्रभाव देखा और महसूस किया है। इसके पीछे का विज्ञान और विधि भी बहुत ही सुलझी हुई है। देश, काल, प्रकृति के अनुसार ही मरीज़ का ट्रीटमेंट किया जाता है। और हां, जिन्हें लगता हो कि इन जड़ी बूटियों का कोई नुकसान नहीं होता, वे बहुत बड़ी भूल में हैं। प्रकृति से जड़ी बूटियों को लिया ज़रूर जाता है, पर कंसंट्रेटेड फॉर्म में जब मेडिसिन के तौर पर इस्तेमाल होती हैं, तो वे भी टॉक्सिक होती हैं, उन्हें मारक बनाया ही जाता है ताकि बीमारी से लड़ा जा सके। अगर आप अपनी मर्ज़ी से वटी, अवलेह, आसव और भस्म फांक रहे हैं, तो यकीन मानिए आपके अंदर एंटीबायोटिक्स, अल्कोहल, टॉक्सिन (poison) भी प्रचुर मात्रा में जा रहे हैं, कुछ cases में एलोपैथिक मेडिसिन से भी ज़्यादा, क्योंकि कम से कम घातक लाइफ threatening allopathic medicine तो बिना प्रिस्क्रिप्शन के नहीं मिलती और आप नॉर्मली बहुत बड़े नुकसान से बच जाते हैं।
आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक, यूनानी और यहां तक कि एक्यूप्रेशर और naturopathy भी साइंस ही हैं, इनमें भी मात्रा, तरीका और मरीज़ की बर्दाश्त कर पाने की ताकत बहुत मायने रखती है। सिर्फ और सिर्फ कमर्शियल फायदे के लिए बाजारों का इनकी दवाओं और so called experts से पट जाना बहुत नुकसान करने वाला है! एलोपैथी में ओवर द काउंटर, व्हाट्सएप पर घूमते प्रिस्क्रिप्शन और कहीं कहीं कुछ डॉक्टर्स की लापरवाही, जानकारी की कमी और लालच ने ऑलरेडी, एक महामारी से निपटने को बहुत बहुत मुश्किल बना दिया है, उस पर बाबाओं के खोखले दावे और उल्टे सीधे घरेलू इलाज और कहर ढा रहे हैं। ये सब अपनी अपनी जगह काम करते हैं, पर तभी जब कोई एक्सपर्ट अपनी निगरानी में आप पर यह लागू करे। डॉक्टर की सलाह और close monitoring के बिना इलाज करना और करवाना, बहुत बड़ी मुसीबत को बुलावा देना है।
नहीं जानती, कितने लोग इस बात को जानना समझना चाहेगें, पर अपने अनुभव से कहती हूं, जब भी आप भेड़ चाल का हिस्सा बनते हैं, बिना सोचे समझे blindly follow करते हैं, गिरना लाज़मी है और अगर बात सांसों की हो तो जीवन से हाथ धोना भी… यह वक्त बहुत बुरा है, इसे धर्म, संस्कृति, परिपाटी के नाम पर और मुश्किल मत बनने दीजिए… अनुपमा सरकार
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