10 बाय 10 के कमरे में दो फुट के रोशनदान से आती रोशनी देखकर गढ़ लेती हूं, गुनगुने ख़्वाब… हाथ बढ़ाकर, खुली आंखों से छू लेती हूं, जगमग आग का गोला… मन की खिन्नता, उंगलियां जला देती है.. पल भर की खुशी, दिल गुदगुदा जाती है… ठन्डे फर्श पर पांव पटक, गुस्सा शांत करती हूं.. गरम कम्बल में कांपते हाथ छुपा, समेट लेती हूं ऊष्णता.. क्षणभंगुर जीवन को पलकों की आवाजाही सा महसूस करने लगी हूं… आइने में झांकते चेहरे पर मन के आते जाते भाव पढ़ने की कोशिश करती हूं और विफल हो जाती हूं… तन और मन, प्रकृति की जटिल गुत्थियां नहीं… आवरण हैं… भ्रामक आवरण, और जीवन, पल प्रतिपल… भटक, खटक, चटख कर… इसे साबित करने पर उतारू हो चला है…
Anupama
#kuchpanne
Recent Comments