जयशंकर प्रसाद जी, छायावाद युग के स्तम्भ कवि माने जाते हैं.. उनकी कामायनी विशुद्ध एहसासों की वैतरणी है.. वे जितना मधुर लिखते थे, उतना ही सारगर्भित भी
प्रेमचन्द जी ने जब हंस के आत्मकथा विशेषांक के लिए उनसे कृति भेजने को कहा, तो प्रसाद जी अपने जीवन के सुख दुख, सबके सामने लाने के पक्ष में नहीं थे.. पर दोस्त का आग्रह टाल न पाए और घुमा फिरा कर लिख दी एक खूबसूरत कविता “आत्मकथ्य”, जिसमें उन्होंने जीवनी न लिखने के कारण को बड़ी ही कुशलता से समझाया है
प्रस्तुत है “आत्मकथ्य” जयशंकर प्रसाद जी की रचना मेरे अंदाज़ में
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