Kuch Panne

आस्था

आज किसी से लंबी चौड़ी बात हुई, उनके धर्म और आस्था के बारे में… सहज उत्सुकता थी मन में, और उनके विश्वास और अभिव्यक्ति के प्रति सरल समर्थन भी.. पर अचानक वे मंदिरों और पूजा पाठ की सभी विधियों पर ऊँगली उठाने लगी.. जबकि हिन्दू धर्म के बारे में उनकी जानकारी मुझे बेहद उथली लगी… फिर भी केवल अपने पंथ को ऊपर दिखाने की कोशिश में येन केन प्रकारेण, सदियों पुरानी आस्था पर चोट करते जाना, विस्मित कर गया… क्यों भाई, जियो और जीने दो, के एक पलड़े में तो हम भी आते हैं.. जर्जर होती रूढ़ियां खुद ही दम तोड़ देतीं हैं… उनके लिए पूरे धर्म पर, करोड़ों लोगों की सदियों पुरानी परम्पराओं को नीचा दिखाने की ज़रूरत क्यों भला 🤔 क्या हम दूसरों की आस्था को उनके मन की स्वतंत्रता मानकर सहज स्वीकार भी नहीं कर सकते?

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