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अनहोनी

बहुत कोशिश करती हूं कि नेगटिविटी दूर रख पाऊं… दुख दर्द इतना है संसार में… गर हावी होने दिया तो मुस्कुराहट ढूंढे न मिलेगी किसी चेहरे पर..

टीवी नहीं देखती, अखबार भी नहीं पढ़ती, व्ट्सएप पर आने वाले संदेश फोरवड भी नहीं करती… क्योंकि ज़्यादातर अफवाह और नेगेटिव बातों से लबरेज़ होते हैं..

आजकल तो कोट्स भी शेयर करने से बचने लगी हूं कि वो भी जाने किसने, किस परिपेक्ष्य में लिखे और न जाने क्यों और कैसे हमारे इनबॉक्स में पहुंच रहे हैं… लेखक का नाम तो वैसे ही अब कोई याद नहीं रखना चाहता..

खोखले शब्दों की भरमार हमारे आसपास बवंडर सी चक्कर काट रही है… कभी हम एक तरफ झुकते हैं तो कभी दूसरी तरफ…. टेक्नोलॉजी का विकसित हो जाना, मानव जीवन में इतनी कंप्लेक्सिटी ले आएगा, शायद बनाने वालों ने भी नहीं सोचा होगा…

एक कलीग बता रहीं थीं कि जब वो अपने गांव जाती हैं, तो जीवन ठहर जाता है… मैंने पूछा क्यों.. तो झल्ला कर बोलीं कुछ होता ही नहीं वहां.. और मैं अवाक सी उनका चेहरा देख रही थी.. अनहोनी होने से तो बेहतर होगा कुछ भी न होना 🙁
Anupama

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