Fursat ke Pal

अंगड़ाई

सुबह 6 बजे अंगड़ाई लेती उनींदी अँखियों में जब लिशकाते सूरज की किरणें काँटों सी चुभें तो मन करता है न बादलों की चादर सर पे ओढ़ लेने का !

रोम रोम पुकारने लगता है उस शरारती चाँद को जो अपनी ठंडक खुद में समेटे चुपचाप रात्रि के तीसरे पहर में तारों की चिलमन के बीच जा छुपा था। नींद तो तब भी खुली थी जब झक्क सफ़ेद धुंए के पैबंद नीले आसमां के हुस्न में चार चाँद लगाये थे और ये पागल मन बारिश की बूंदों में तर होने को बेकल हो उठा था। पर मौसम तो ठहरा ही मनचला, उम्मीदों ख्वाबों ख्यालों से उसका लेना देना भी क्या !

जाने कब हौले से मेरे बादल उड़ा ले गया। घोंसलों में पंख समेटे चैन की नींद सोते पंछियों को पता भी न चला की कब बादलों की टुकड़ियां सूरज से सांठ गांठ कर सीमा पार हो गयीं। और पीछे छूट गयी तो बस ये चिलचिलाती सी गर्मी और चिपचिपी उमस।

खैर मौसम शरीर है तो क्या, ज़िद्दी हम भी कम तो नहीं। जा रहे हैं एसी ऑन करके कृत्रिम शीतलता की गोद में प्रस्थान करने। नींद पे भी किसी का बस चला क्या !
Anupama

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