आज की भागदौड़ भरी दुनिया में शायद ही कोई हो, जो बिना दवा या डॉक्टर के गुज़ारा कर सके… या यूं कहें कि अगर आज हम में से ज़्यादातर लोग, एक लम्बी उम्र तक जीने के काबिल हुए हैं, तो ये मेडिकल साइंस में हुई आश्चर्यजनक प्रगति का ही नतीजा है.. पिछले कुछ सालों में तेज़ी से एलोपैथिक दवाइयों का चलन बढ़ा है.. इस से पहले वैद्य और हकीम ही एकमात्र सहारा हुआ करते थे..
और हालांकि कभी कभी इस बात को लेकर पसोपेश में पड़ जाती हूं कि क्या पहले के natural तरीकों से जीना, जड़ी बूटियों तक सीमित हो, बड़ी बीमारियां झेले बिना ही दुनिया से चले जाना बेहतर था.. या फिर आज का येन केन प्रकारेन, किडनी, हार्ट, लिवर, आंखें, घुटने ट्रांसप्लांट करवा कर, कृत्रिम उपकरणों और तरीकों पर सांस लेते रहना..
फिर भी ये प्रश्न व्यवहारिक कम दार्शनिक ज़्यादा है.. अक्सर खुद पर मुसीबत आए तो हम उसका निदान ढूंढने में जुट ही जाते हैं, बिना लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स समझे… अपने लिए फैसला लेना हो तो मैं मौत को बिना चुनौती दिए, जितना जीवन मिला है, उतना जीते हुए जाना पसंद करूंगी.. पर मेरा ये फैसला सिर्फ खुद के लिए, बाकियों के लिए कहीं न कहीं लालची हो उठती हूं..
खैर जीवन है ही ऐसा.. बहुत बारीकियां हैं पर फिर भी आज भारत की पहली महिला चिकित्सक या यूं कहें कि अमरीकी ज़मीन पर एलोपैथ में दीक्षा हासिल करने वाली आनंदी गोपालराव जोशी को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रही हूं.. गूगल डूडल पर इनका चित्र देखकर जिज्ञासा हुई और मैं लालायित हो उठी, उनके बारे में थोड़ा और जानने को..
थोड़ा सा सर्च करते ही ज्ञात हुआ कि उनकी मृत्यु, डिग्री हासिल करने के अगले ही बरस, सिर्फ 22 वर्ष की आयु में ही हो गई थी.. कोल्हापुर राज्य ने उन्हें अपने हॉस्पिटल के महिला वार्ड का इंचार्ज ज़रूर बनाया था, पर अफसोस वे वहां चन्द महीने ही काम कर पाईं और टीबी के चलते उनकी मृत्यु हो गई..
मुझे जितना अफसोस एक प्रतिभावान इंसान के जल्द चले जाने का हुआ, उतना ही गर्व मनुष्य की जिजीविषा पर हुआ.. आनंदी की शादी 9 साल में हुई थी और 15 की होने तक वे मां बनकर, अपने बच्चे को खो चुकी थीं.. उनके पति एक साधारण क्लर्क थे पर अपनी पत्नी की इस बात से सहमत, कि हमारे देश में बेहतर डॉक्टर्स की ज़रूरत है.. दोनों ने अथक प्रयास किए और आखिर आनंदी अमरीका जाकर, डॉक्टर बनकर ही लौटीं.. शायद एक डॉक्टर बन पाना, उनके जीवन का लक्ष्य और सपना दोनों बन चुका था.. और ठीक उतना ही समय और सामर्थ्य उन्हें मिला भी.. आज 150 बरस बाद भी आंनदी प्रेरणा देने में सक्षम हैं.. आप कुछ करने की ठान लें तो वक़्त और उम्र मायने रखती भी कहां…
Anupama Sarkar
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