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अजब दौर

पीली साड़ी वाली और नीली ड्रेस वाली.. फोटोज़, विडियोज़, न्यूज़, इंटरव्यूज़.. किसी भुलावे में मत रहिएगा.. यहां पोशाकों के नाम से पुकारे जाने वाली महिलाएं, किसी फिल्म की हीरोइन या रैंप वॉक करती मॉडल्स नहीं हैं.. बल्कि आपकी और मेरी तरह अपनी ड्यूटी करती हुई आम घरों की आम औरतें हैं!

तो फिर क्योंकर हुए ये फोटोज़ वायरल? किसने शूट किए विडियोज़? और किसने बनने दिया इन्हें चटखारे लेते और खींसे निपोरते आदमियों के मोबाइल फोन की गैलरी में शामिल एक और पिक्चर??

क्या एक बार भी आपमें से किसी को ख्याल आया कि कल इन दोनों की जगह आप या आपकी कोई अपनी भी हो सकती हैं.. आखिर अब फोटो और वीडियो बना लेने की सुविधा तो हर पॉकेट में मौजूद है न, मोबाइल के रूप में! हां, शायद उनकी तस्वीरें सिर्फ़ स्टाइलिश होने की बिनाह पर ही शेयर न हों! और एक खूबसूरत महिला, अगर अपने संगी साथियों के साथ मुस्कुरा कर बात करती हुई, नज़र आ भी जाती है, तो क्या ज़रूरत पड़ जाती है उसे सस्ते चैनलों पर खबर बनकर दिखलाने की.. और ये मत कहिएगा कि पीली साड़ी वाली मोहतरमा इंटरव्यू में खुश नज़र आ रहीं थीं.. मुझे बात उनकी नहीं, उन सभी जर्नलिस्ट्स की करनी है जिनके लिए ये मसालेदार ख़बर थी.. और होड़ मचाकर सबसे पहले दिखा दिया जाना ज़रूरी कर्म था.. उन अजब आदमियों की करनी है, जिनके पास ये वॉट्सएप आए और उन्होंने पूरी श्रद्धा से आगे बढ़ाए!

विकृत मानसिकता और उज्जड़ पन का परिचायक लगी मुझे ये हरकत.. हमारे समाज ने घूंघट प्रथा को पीछे बेशक छोड़ दिया हो, पर अफसोस अब भी आप स्त्री को इंसान नहीं समझ पाए, शरीर समझ आंखें ही सेंक रहे हैं, चीज़ समझ कर अपने मोबाइल्स में कैद कर रहे हैं!

मीडिया ही नहीं समाज के मुंह पर तमाचा है ये हरकत.. चुनाव की सरगर्मी में नेताओं से बोर, मुद्दों से परे होते, बेशर्म पत्रकारों की जनता को भुनाने की एक और कोशिश!! अनुपमा सरकार

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