मई की तपती दोपहर, गरम हवा के थपेड़ों से जूझती, पल-पल माथे पर उमड़ती पसीने की बूंदों को आंचल से पोंछती, निर्विकार खड़ी थी वो। उस लंबी सी लाईन में लगभग सबसे पीछे, दो घंटे हो चले थे। बड़े डॉक्टर को दिखाने का लालच उसकी सभी परेशानियों पर भारी जो पड़ गया था। आखिर मुन्ने का सवाल था। साल भर का मरियल पुराने कपड़े में लिपटा काठ का गुड्डा, जिसे वो अपना बच्चा मानती आई थी, आज सुबह ही जलते चूल्हे में गिर गया था। उसने झट आग में हाथ डाल वापिस निकाल लिया था अपना गुड्डा। हाथ भर गहरा घाव हुआ था गोमती की कलाई पर। पर, उसे अपनी फिक़्र न थी, बस रह रह कर नन्ही गुड्डन याद आती और वो मनहूस सफर भी, जब प्लेटफॉर्म की रेलमपेल में वो गुम गयी थी, अपना मुन्ना, माँ के हाथ में थमा।
Anupama
Recent Comments