आधी रात, पूरा चाँद और बिखरी किताबें
कभी कभी ज़िंदगी कोरे कागज़ पर
लाल स्याही से लिखी इबारतों सी लगती है
हर शब्द चुनकर, हर कहानी बुनकर
पलक झपकाते तारों से ज़मीं पर
उतर आएं हो जैसे
लकड़ी की मेज़, लोहे का शेल्फ
पत्थर की दीवार और कांच की खिड़की
कुछ भी एक जैसा नहीं इनमें
खुला आकाश, बन्द दरवाज़े
सफेद छत और उनींदी सी मैं
अक्सर यूँ ही आधी रात, पूरे चाँद तले
अधखुले पन्नों पर अनकही बातों से
मुलाकात हुआ करती है और ज़िंदगी
मुस्कुरा कर कहती है
इन दीवारों से परे जहां और भी है
Anupama
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