कहते हैं, नियति से भागा नहीं जा सकता… 17 साल पहले बी एड बीच में छोड़कर भाग अाई थी… Lesson Plan बनाना और फिर उन्हें बच्चों पर थोपने की कोशिश करना ताकि यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर को इंप्रेस कर पाऊं, बहुत बोरिंग और गैर ज़रूरी लगा था…
मेरा बस चलता तो सबको गोलदारे में बिठाकर नाज़ुक कलियों से लेकर आकाश के तारों तक का सफ़र करवाती… उन बादलों के हिंडोलों में झूलते पीपल के पत्तों पर सारंगी बजवाती और मोर के पंखों नहीं उसके नन्हे नन्हे पैरों और चील की सीटियों से परिचय करवाती…
अब ये सब तो होना नहीं था, सो हमने बैक डोर से ऐग्ज़िट मार ली थी… अरे नहीं बनना टीचर… नहीं पढ़ाना मुनरो/कोलरिज/कीट्स… नहीं करना क्रिएटिविटी को कैद और नहीं समेटना किसी की इंटेलिजेंस को मार्क्स के घेरे में…
काफ़ी विरोध झेला था घर पर… मुश्किल से मिलता है ये मौक़ा… Delhi University को ठोकर मारकर क्लर्क की नौकरी करना, कहां की समझदारी… पर हम तो ठहरे ही मनमौजी… तब भी नहीं ही सुनी थी… डांट प्यार एक से लगे थे… बस मन की रहा पकड़ी…
पर आज वीडियो पोस्ट करते हुए, थोड़ा हैरान हुई… आज फिर लौट आई हूं, शिक्षण की ओर… कविता, कहानी, लेखन की दुनिया में भाव विभोर होते होते, कब क्रिएटिव राइटिंग सिखाने का ख़्याल आ गया, याद नहीं… पर, हां, मज़ा बहुत आ रहा है… इस बार ये ट्रेनिंग मेरी मनपसंद जो है और स्टूडेंट्स भी वही, जो सचमुच मेरे साथ बैठकर, पेड़, तारे, बादल, फ़ूल, सब एक साथ गढ़ लेने वाले… आज 3550 सब्सक्राइबर्स हुए मेरे शब्द मेरे साथ पर… शायद आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं… पर उनका प्यार, likes और कमेंट्स के रूप में मन लुभा रहा है…
कहते हैं न, नियति वहीं ले आती है, जहां के हम मुसाफ़िर, राह कोई भी पकड़ी जाए… सो, ये सफ़र जारी रहेगा, अपने प्रिय हमराहियों के साथ…
आप भी जुड़िए मेरे शब्द मेरे साथ से और लेखन के अनछुए पहलुओं को जानिए… अनुपमा सरकार
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