अभेद्य प्रपंच है जीवन.. बेहद धीमी गति से रेंगता एक दुःस्वप्न.. वो हुलसकर बाहर आना चाहती है.. पर सघन तिमिर उसकी बांह खींच, वापिस ले जाता है… छोटे छोटे जुगनू, आशा की किरण से टिमटिमाते हैं और वो फिर फिर उन्हीं राहों पर लौट आती है.. चांदनी का ललचाता भ्रम या सूरज की तपिश का भय, कुछ तो है.. अनबूझा, अनकहा..
सुमन हवा में थरथराते पीपल के पत्तों सी झूल रही है.. सांस सांस ज़हरीले धुएं को गटकती, मुंह अंधेरे ही रसोई में पहुंच, बरसात में जंग खाती पुरानी खिड़की को ज़ोर से धक्का देती है.. हवा का झोंका उसके दुपट्टे को सर से खींच देता है… दूर कहीं जोगी बुदबुदाता है… तेरा तुझको अर्पण..
वो कंपकंपाते हुए, नल से बहती अविरल धारा से एक घूंट भरती है.. . ईश्वर एक द्वार बंद करें, तो कई नये मार्ग प्रशस्त होते हैं… सुना था कभी…
पर जीवन अभेद्य प्रपंच है, ये सुना समझा नहीं..
Anupama
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