काश किसी रोज़ बादलों की मखमली चादर ओढे़ देर तक सोती रहती। सूरज अपनी चिलमिलाती धूप को बरगद की छांव में छिपा कर, दबे पांव किरणों का इंद्रधनुष अपनी हथेलियों में समेटे, मेरे करीब आता। गुलाब की पंखुडियां नशीली हवा में झूमती, हौले से पांवों में गुदगुदी करतीं। ओस की बूंदें माथे को प्यार से चूमतीं, नन्हीं सोनचिरैया फुदक-फुदक मेरे कानों में मधुर सा गीत गाती, लुकीछिपी चांदनी मेरी रंगत में घुलमिल जाती। अंगूरों की बेलें लहक-लहक मेरे अधरों पर मधु छलकातीं, रातरानी दिन में भी खुशबू बरसाती। तुलसी की भीनी सुगंध, भंवरों का गुंजन, तितलियों की बेफिक्र मुस्कान लिए उनींदी अंखियां धीमे-धीमे स्वपनलोक की सितारों वाली पालकी से बिस्तर की नरम रजाई में लौट आतीं। काश कोई सुबह ऐसी होती जब काम की मजबूरी नहीं, ये प्रकृति मुझे जगाती!
Anupama
#fursatkepal
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