घर लौटते वक्त बड़ा सा शामियाना दिखा मुझे। चार पांच Micky Mouse झूल रहे थे गेट पर और विशाल Mary Go Round चमकीले बल्बों की रोशनी बिखेरता घूम रहा था अपनी धुरी पर।
शायद बच्चे का जन्मदिन मनाया जा रहा था। खुशियों के रंग खूबसूरत रंगरलियों के संग। कितना मधुर अहसास होता है न पल-पल अपने लाडले को पनपते देखना। किलकारियों का गूंजना, घुटनों रगड़ना, वो पांव पांव चलना। हर वक्त एक नई अनुभूति, नया अहसास। यकायक मुझे याद आ गया वो Ceramic Sculpture Duo जो कुछ देर पहले ही Soumen Basu की exhibition में देखकर आई हूं।
Relation I and II की श्रृंखला में पहली Sculpture में दो सटे से पुतले थे, बेहद करीब, दुनिया से परे, बस इक दूजे से मुखातिब मानो खुद का वजूद ही खो बैठे हों, कुछ पति पत्नी, मां शिशु सरीखा ही। वहीं दूसरी मूरत इक दूजे से मुंह फेरे खड़ी, इक बड़ी इक छोटी, ज्यों अस्तित्व की लड़ाई में वो पहला सा अहसास ही भूल बैठे हों। पहचानते ही नहीं, समझने की तो कौन कहे!
सोचने लगी शायद जीवन की कड़वी सच्चाई है ये, जितनी गहन नज़दीकियाँ, उतनी ही सख्त दूरियां। शायद तभी तो बच्चे का जन्मदिन धूमधाम से मनाते हम अपने बूढ़े माता पिता को घर ही भूल आते हैं। वही बच्चे कुछ सालों बाद स्वावलंबन की आड़ में उसी तीखी तल्खी का अहसास हमें कराते हैं।
रिश्तों के हर मोड़ पर कुछ पीछे छूटता जाता है। मुंह फेरकर, अपने मन की दुहाई से, सरपट दौड़ते हैं पथरीली ऊंचाईयों की ओर। इस बात से बेखबर कि शिखर के उस पार क्षितिज नहीं उतराई है, कोरी कल्पना नहीं केवल असीमित शाश्वत सत्य!
Anupama
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