आज घूमकर अाई विश्व पुस्तक मेले 2018 में.. मौका था और दस्तूर भी.. मेरे दो साझा संग्रह, आज लेखक मंच पर “रूबरू” इवेंट में विमोचित होने थे.. तेज प्रताप जी, दामिनी यादव जी और स्नेह सुधा जी के कुशल संपादन में संचय प्रकाशन से “पर्दे के पीछे की बेखौफ आवाज़ें” और “शब्दों की अदालत”, हॉल नंबर 8 में ध्रुव गुप्त जी, अलका सिन्हा जी, ओमप्रकाश जी के कर कमलों से विमोचित हुए..
अपनी कविताओं को पुस्तक के रूप में देखना बहुत सुहाता है और इस से बढ़कर गुणी जनों का सानिध्य गुदगुदा जाता है.. ध्रुव जी से पहली मुलाकात मन छू गई.. जितना प्रभावशाली उनका लेखन, उतना ही सहज व्यक्तित्व.. शायद विनम्रता गुणों को और चमका देती है…तेज जी, दामिनी जी, संतोष जी, स्नेह और विक्रम जी से मिलना तो हमेशा आत्मीय लगता ही है..
हॉल से बाहर आते हुए अचानक वरिष्ठ कवियत्री अनामिका जी से भेंट हुई.. मैंने स्माइल ही करा था कि वे झट हाथ पकड़कर बोलीं, आंखें बहुत प्यारी हैं तुम्हारी, लिखती हो न, किताब कब आएगी.. मैं हतप्रभ सी, इसी साल आयेगी कहकर हंस पड़ी.. प्यार से तस्वीर खिंचवाई, वे हॉल के अंदर बोधि प्रकाशन की ओर और मैं, बाहर अपने दोस्त की तरफ… मेले में मिलना भी शायद यूं अचानक ही होता है..
छोटे छोटे से अनुभव, किसी मित्र का प्यार से गले लगाना, किसी का अधिकार से शिकायत करना और कभी अनजाने ही एक दूसरे को पहचानकर झेंप जाना, बोहोत से जाने पहचाने चेहरे आज नज़र आए.. हेमलता जी, दमयंती, शोभा जी, माया मृग जी, निरुपमा जी, नित्यानंद जी, कविता, राजकुमार जी, मनोज जी और भी बहुत से मित्र, हंसते खिलखिलाते मिले…
और हां संतोष पटेल जी के संग मेला घूमना तो हमेशा सुखद लगता ही है.. डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी की नई किताब “तथागत” अधिकारपूर्वक ले आयी हूं.. जल्द पढूंगी..
एक छोटा सा दिन तस्वीरों में मुस्कुराहट और मन में खुशी समेटे हुए
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