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लेखन : वर्गीकरण

बच्चे सभी खेलते हैं, कोई टायर घुमाकर, कोई रिमोट वाली कार चलाकर और कोई 3D एनीमेशन में वर्चुअल रियलिटी को भरपूर जीते हुए… कह सकते हैं कि जिसकी जैसी परिस्थतियां, वैसा ही उसका मनोरंजन और रूचि…

कभी कभी लगता है कि शैक्षिक योग्यता व रोज़गार की ज़रूरतों से इतर होकर पढ़ना लिखना भी ठीक वैसा ही है… इसे हॉबी कहिये, अपना मन कहने सुनने का, उन्मुक्त होकर क्रिएटिवली जीने का तरीका कहिये या केवल मनोरंजन का साधन… हालात वयस्क होने पर भी बच्चों से कुछ अलग नहींं.. हरेक की अपनी रूचि, अपनी आवश्यकताएं, अपनी सोच समझ व अपने ही संसाधन…

हल्की फुल्की शेरो शायरी, तुकबन्दी करना, शब्दों से खेलना.. हम सबको लुभाता है… शायद हमेशा से ही हमारे समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे हुए ही हैं, जो गाहे बगाहे लय ताल मिला, आपसे वाहवाही अपेक्षित करते रहे हों… और सच कहूँ तो मुझे उनकी ये हरकत बचपने की याद दिलाते हुए, केवल मुस्कान भर लेने का एक सीधा सा उपाय ही लगी.. सोशल मीडिया की सरल उपलब्धता ने हम सब के बीच ऐसी गतिविधियों को तेज़ी से बढ़ाया है… कह सकते हैं कि एक ओपन फील्ड मिल गयी, सभी को, खुद को क्रिएटिवली प्रस्तुत करने के लिये..

पर इसका मतलब ये तो हरगिज़ नहीं कि सोशल मीडिया पर लिखने वाले सभी उसी तरह की सोच में यकीन करते हों… और उसी वर्ग में स्थापित कर दिये जाएँ… केवल शैक्षणिक व साहित्यिक उपलब्धियों के लिये ही तो नहीं लिखा जाता.. लेखन सबसे पहले आपके मन की आवाज़ है… वो कचोट, वो कसक है, जो बिना शब्दों में बंधे आपको सहज सरल होने नहीं देती…

लेखन भाव और भाषा के द्विस्तम्भों पर टिका है… दोनों ही तरल, गतिमान, ऊर्जा से ओतप्रोत रश्मियां हैं, जिन्हें परिभाषाओं, विधाओं, परिपाटियों में बांधकर रखना सर्वथा अनुचित…

इसलिए हल्का सा क्षोभ होता है जब यहां के लेखन को फ़ेसबुकिया लेखन कहकर अलग वर्ग में रख दिया जाता है..

हैं यहां भी सशक्त कविताएँ, गम्भीर लेख, उच्च कोटि की कहानियां, बस उन्हें पढ़ने वाले व सीरियसली लेने वाले कुछ कम हैं… क्योंकि सच भी तो यही कि पब्लिक का एक छोटा हिस्सा ही साहित्य में रूचि रखता है और फेसबुक सबसे पहले सोशल प्लेटफार्म है…

सुधि पाठक व लेखक अपने सीमित दायरों में क़ैद हैं यहां भी… अपने अपने सर्कल, घूमफिर कर वही कुछ साथी… एक ही फ़्लेवर और कलेवर की रचनाओं को सराहना और आलोचना के लायक समझना… बाकी सब से नज़रें हटाकर रखना… हालात एक जैसे ही हैं, असल और फेसबुक लेखन में, क्योंकि हम सब भी एक जैसे ही हैं… अपने अपने बुलबुलों में क़ैद…
Anupama

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