अलसाया सा चाँद
बादलों की चादर
मुंह तक ओढ़े
दुबका पड़ा है
न सुने
चंचल पत्तियों की खनक
न समझे
चुप्पे पंछियों की ललक
बस
बूंदों के
मधुर संगीत में
डूबता उबरता
निद्रा लोक में
विचरणकर रहा है
बेचारे तारे
मुंह पर
ताला जड़े
इंतज़ार कर रहे हैं
प्रियतम के जगने का
आखिर बिन चाँद
बरसता मेह
मीठा भी
तो नहीं लगता !!
Anupama
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